किसान आंदोलन और सरकार
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नए कृषि कानूनों को लेकर किसानों द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन को लेकर अब केंद्र सरकार के सामने बड़ा सवाल है इस मामले का सर्वमान्य हल कैसे निकाला जाए। फिलहाल अब किसानों की सरकार के साथ वार्ता चल रही है, लेकिन किसान कृषि कानूनों को वापस लेने पर अडिग बने हुए हैं। सरकार की ओर से विज्ञान भवन में चल रही वार्ता में केंद्र सरकार की ओर से कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर तथा केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल तथा किसानों की ओर से विभिन्न किसान संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हैं।
किसान मामले के हल के लिए समिति बनाने पर राजी हो गए हैं, लेकिन उनका कहना है कि जब तक मामले का कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकलता उनका आंदोलन जारी रहेगा। एक किसान प्रतिनिधि ने तो कृषि कानूनों को अन्नदाता के लिए डेथ वारंट तक बता दिया। यहां पर सवाल उठता है कि यदि कृषि कानून वाकई में किसानों के हित में हैं तो लम्बे समय से इनको लेकर किसानों द्वारा आंदोलन चलाये जाने के बावजूद इन कानूनों को लेकर अब तक किसानों के दिलो दिमाग पर छायी आशंकाओं को दूर करने के लिए सरकार की ओर से कोई गंभीर पहल क्यों नहीं की गई। यदि सरकार को पूरा भरोसा है कि ये कृषि कानून अन्नदाता के लिए कल्याण कारी हैं तो सरकार किसानों को सहमत अथवा संतुष्ट क्यों नहीं कर पा रही है।
हो सकता है कि सरकार की बात सही हो और वाकई में ये कानून किसानों के हित में हों, लेकिन किसानों को इन कानूनों को बारीकी से समझाने तथा उनकी रजामंदी हासिल करने में सरकार का प्रचार तंत्र फेल हो गया है। एक बात और है कि विपक्ष द्वारा लगातार इन कानूनों की खिलाफत करने के बावजूद जमीनी स्तर पर इन कानूनों के फायदों से अन्नदाता को अवगत नहीं कराया गया, जिसकी वजह से आज सरकार के सामने इस समस्या को सुलझाने की चुनौती खड़ी हो गई है। फिलहाल, आंदोलनकारी किसानों के प्रतिनिधियों को भी चाहिए कि वे बजाय आंदोलन का रास्ता अपनाने के इन कानूनों की बारीकियों को अच्छी तरह समझकर सरकार के साथ सर्वमान्य हल निकालने में सहयोग करें। कहीं, ऐसा न हो कि वे विपक्ष के भ्रमजाल में उलझकर इसे वापस लेने की मांग करके अपना ही अहित कर रहे हों, जैसा कि सरकार कह रही है
संपादक: राम सिंह
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